बलोदा बाज़ार, छत्तीसगढ़|
जब ASER का सर्वेक्षण सामने आया, तो उसमें भारत के 28 ज़िलों के स्कूलों का मूल्यांकन किया गया। उस सूची में बलोदा बाज़ार ज़िला काफी ख़राब स्थिति में था। बच्चों की पढ़ने लिखने की क्षमताओं पर इस सर्वेक्षण ने एक बड़ा प्रश्न चिह्न लगाया। पर उसी ज़िले के एक विद्यालय की तस्वीर कुछ और ही थी।
यहाँ पहली कक्षा के बच्चे न केवल शब्दों को पढ़ पा रहे थे, बल्कि वर्णों को जोड़ कर शब्द बना पा रहे थे। आखिर पहली कक्षा के इन बच्चों को इतने अच्छे से पढ़ना लिखना कैसे सिखाया गया? इस सवाल का जवाब मुझे हुबिराम वर्मा जी ने दिया। हुबिराम जी अपने ज़िले के ‘Room to Read’ नामक पहल के मास्टर ट्रेनर हैं। ‘Room to Read’ एक संस्था का नाम है, जो छत्तीसगढ़ के स्कूलों में बच्चों का पढ़ने लिखने का स्तर बढ़ाने के लिए काम कर रही है।
हुबिराम जी ट्रेनर होने के नाते शिक्षकों को भाषा सिखाने के नए व प्रभावी तरीके सिखाते हैं। पर उनकी पहली कक्षा के बच्चों का स्तर इतना अच्छा है कि उनके विद्यालय को ‘Room to Read’ द्वारा मदद की ज़रूरत नहीं पड़ी। ये इसीलिए क्योंकि हुबिराम जी पिछले दो सालों से बच्चों की भाषा पर काम कर रहे हैं। वह बच्चों को वर्ण सिखाने के लिए पहले वर्ण की ध्वनि सुनाते हैं। जब बच्चे उस ध्वनि को अच्छे से समझ जाएँ, तो वह उन्हें वर्ण दिखाते व लिखना सिखाते हैं। लिखना सिखाने के लिए वह बच्चों को एक गत्ते पे वर्ण बनाकर देते, और उसपर उनकी ऊँगली फिराते। जब बच्चे समझ जाते कि उस वर्ण का आकार कैसा है, तो वह बच्चों से बोर्ड पर व कॉपियों में लिखवाते।
इस तरह से हुबिराम जी ने पहली कक्षा के बच्चों का पढ़ने लिखने का स्तर बढ़ाया। ये कोशिश वाकई सराहनीय है!
यह कहानी हुबिरम वर्मा के जीवन पर आधारित है जो, बलोदा बाज़ार, छत्तीसगढ़ से हैं|
कहानी लावन्या कपूर के द्वारा लिखी गयी है|
हम छत्तीसगढ़ सरकार के आभारी हैं कि उन्होंने हमें Humans of Indian Schools से परिचित किया|
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very good
very nice